जब हम किसी व्यक्ति से अपना कोई कार्य करवाते हैं तो उसके एहसानमंद हो जाते हैं एहसान का बोझ आत्मा पर चढ़ जाता हैं, कर्ज के बोझ के समान होता हैं यादगार शास्त्रो में कर्ज के बोझ का वजह पृथ्वी से भी भारी माना गया हैं इसलिए आत्मा तुरन्त उससे मुक्त होना चाहते हैं। कर्जा व्यक्ति को कर्जदाता का गुलाम बना देता हैं। किसी की दाल रोटी खाना किसी कि सिफारिश से नौकरी पाना या कोई अपना कार्य निकलवाना किसी की सेवाये या मदद मुफ्त में लेना अपना कार्य स्वयं न करके औरो से करवाना ये सभी कर्म आत्मा पर एहसान लेने का कर्जा चढ़ा देता हैं इस बोझ से दबी हुई आत्मा श्रेष्ठ कर्म का त्याग सकती है।