कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भले ही कितने भी धनवान हो उदार ह्दयता नही प्रकट करते और मक्सीचूस और मनहूस बने रहते हैं क्योकि उनके आदते भूखो और भीखमंगो जैसे संकुचित एवं संकीर्ण होती है। लालच तथा स्वार्थ भावना ने उनके ह्दय की संपूर्ण सरसता को सुखा दिया होता है। वे उस बंजर धरती के समाने होते है। जहां कुछ भी नहीं उग सकता। यदि हम में से एक एक ने व्यक्तिगत रुप से अपने मन में श्रेष्ठ विचारो का बीच ही नहीं बोय तो भारत तथा विश्व में सुख शांति की फसल कहां से होगे। केवल सरकार के गिने चुने लोग गरीबी दूर नही कर सकते।