यदि हम यह बात सोचे कि यदि भाई बहनी को अपनी लाज और अपनी शारीरिक रक्षा के लिए राखी बाँधती है। तो भाई को कुछ भी दो शब्द तो इसके उत्तर में कहने ही चाहिएँ। वह कम से कम इतना तो कह दे कि बहनी मै आज यह दृढ़ संकल्प लेता हूँ कि जब तक मेरे मे जीव रहेगें तब तक तेरी आन रहेगी। अच्छा न भी कहे तो उसके चेहरे से ही कम से कम ऐसा भाव प्रगट हो या कोई भाई भी अपना ऐसा अनुभव बता दे कि जब मुझे राखी बान्धी जा रही है। तो मेरे मन में सुरक्षा और वीरता के भाव हो।
जबकि कोई ऐसी स्थिति ही सामने नही होती महौल ही ऐसा नही होता, तो दोनो के मन में कोई रक्षक और रक्षिता के भाव ही नही उठते, एक पवित्र स्नेह एक शुद्ध सम्बन्ध के नाते से मिलते है। और बहनी की रक्षा करना तो भाई का वैसे भी कर्तव्य ही है। इसके लिए राखी बाँधने की क्या आवश्यकता है और हर साल जतलाने याद दिलाने और फरियाद करने की क्या आवश्यकता है।