
पटना: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में दिनांक 09 से 12 दिसंबर 2025 तक चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘समेकित कृषि प्रणाली : समय की मांग’ का श्री गणेश मंगलवार शुभारंभ किया गया। बिहार कृषि प्रबंधन विस्तार प्रशिक्षण संस्थान (बामेती), पटना द्वारा प्रायोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में राज्य के प्रगतिशील किसानों और सहायक तकनीकी प्रबंधकों (ATM) ने भाग लिया। प्रतिभागियों ने अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं (जैसे- वर्षा की कमी, छोटी जोत, पलायन, संसाधनों की कमी एवं ज्ञान के अभाव के कारण कम उपज, दियारा की जमीन, इत्यादि) से वैज्ञानिकों को अवगत कराया और साथ की प्रशिक्षण से जुड़ी से अपनी अपेक्षाओं पर भी प्रकाश डाला। संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए अपने संबोधन में कहा- आवश्यकता है कि किसान स्वयं से प्रश्न करने करें कि उन्हें अनाज के अतिरिक्त अन्य प्रकार की खेती क्यूँ करनी है, अपनी आय को दोगुना या चारगुना क्यूँ बढ़ाना है, किसान स्वयं को 5 लाख प्रति एकड़ के शुद्ध लाभ का लक्ष दे, तो उसे इन प्रश्नों और लक्ष का उत्तर मिलेगा; समेकित कृषि प्रणाली, डॉ. दास ने बताया कि आज आवश्यकता है कि किसान भी सब के साथ मिल कर आने वाली पीढ़ियों के हित में खाद्य आपूर्ति, गुणवत्ता, पोषण सुरक्षा, सुनिश्चित रोजगार, सतत विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा के मुद्दों पर विचार करे और एकजुट होकर कार्य करे। आवश्यकता है कि किसान मिश्रित खेती और समेकित कृषि के अंतर को समझें, और अपने समाज, जलवायु, बाजार एवं संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर ही घटकों का चुनाव कर अपना समेकित कृषि प्रणाली का मॉडल तैयार करे, जिससे उसे अधिक से अधिक लाभ मिल सके। इससे पूर्व, कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. शिवानी, प्रधान वैज्ञानिक, के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने किसानों को समेकित कृषि प्रणाली की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इस प्रशिक्षण की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। इसके बाद, पाठ्यक्रम निदेशक एवं प्रभागाध्यक्ष, फसल अनुसंधान प्रभाग, डॉ. संजीव कुमार ने बताया के किस प्रकार किसान समेकित कृषि प्रणाली को अपनाकर कम जमीन से अधिक लाभ कमा सकते हैं, और प्रति एकड़ 2 से 2.5 लाख तक की अपनी आय को सुनिश्चित कर सकते हैं। डॉ. आशुतोष उपाध्याय, प्रमुख, भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग ने बताया कि बदलते जलवायु परिवेश में भूमि एवं जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी आई है, इसलिए इन संसाधनों का पूर्ण दक्षता से उपयोग करना अनिवार्य हो गया है, जिसमें समेकित कृषि प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। डॉ. कमल शर्मा, प्रमुख, पशुधन एवं मात्स्यिकी प्रबंधन प्रभाग ने समेकित कृषि प्रणाली के अंतर्गत कृषि अपशिष्टों के पुनर्चक्रण द्वारा लागत को कम करने पर प्रकाश डाला। पाठ्यक्रम समन्वयक एवं प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. पी. सी. चन्द्रन ने किसानों द्वारा समेकित कृषि प्रणाली का मॉडल बनाने से पूर्व विभिन्न घटकों की विस्तृत जानकारी एवं उनके संगत एकीकरण के ज्ञान के महत्व पर विचार साझा किए। कार्यक्रम के अंत में डॉ. अभिषेक कुमार, पाठ्यक्रम समन्वयक एवं वैज्ञानिक ने सभी प्रतिभागियों तथा वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
चार दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों को समेकित कृषि प्रणाली के विभिन्न पहलुओं जैसे सिद्धांत, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, पशुधन प्रबंधन, मशरूम उत्पादन, चारा उत्पादन, मत्स्य प्रबंधन, मुर्गी पालन, बत्तख पालन, तालाब और सिंचाई प्रबंधन, केंचुए की खाद, अपशिष्ट पुनर्चक्रण, फसल विविधीकरण और पोषक वाटिका, आदि का मॉडल क्षेत्र पर व्यवहारिक ज्ञान एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
