मानव स्वभाव से ही स्वतन्त्रता प्रेमी हैं अतः वह जिस बात को बन्धन समझता है। उससे छूटने का प्रयत्न करता है। परन्तु रक्षा बन्धन को बहने और भाई त्योहार अथवा उत्सव समझकर खुशी से मनाते है। यह एक न्यारा और प्यारा बन्धन है। बन्धन दो प्रकार के होते हैं एक तो ईश्वरीय और दूसरे सासारिक अर्थात कर्मो के बन्धन। ईश्वरीय बन्धन से मनाव को सुख मिलता है। परन्तु दूसरे प्रकार के बन्धन से दुख की प्राप्ति होती है। रक्षा बन्धन ईश्वरीय बन्धन आध्यात्मिक बन्धन अथवा धार्मिक बन्धन है। विचारवान मनुष्य ईश्वरीय बन्धन में तो बँधना चहाते हैं परन्तु माया के बंधन से मुक्त होना चाहते है। ईश्वरीय बन्धन उन्हे अप्रिय नही लगता परन्तु आज लोगो ने रक्षा बन्धन को एक लौकिक रस्म ही बना दिया है। इसी कारण यह भी बन्धन भासने लगता है। जैसे आध्यात्मिकता और धर्म कर्म के क्षीण हो जाने के कारण संसार की वस्तुओ सें अब सत् अथवा सार निकल गया है। वैसे ही आध्यात्मिकता को निकाल देने से इस त्योहार से भी सत् अथवा सार निकल गया है। वरना यह त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च कोटि का है।