शिवमयी सारी वसुन्धरा है, उनका जन जन से नाता
भला दूसरो का करने से भला स्वयं का हो जाता।
जे सबका हित नही चाहते हे प्रभु उन्हे क्षमा कर दो परपीड़ा सम नही अधमाई उनके मानस में भर दो।।
जो न किसी का अहित मनाते सबके हिताभिलाषी है
कर्मो का फल सबको मिलता, जो इसके विश्रासी है।
वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, उनसे धन्यवती धरती
उन्हे अलभ्य नही जग में कीर्ति वरण उनका करती।।
जो सबका हीय हर्षित करते जग उसके गुण गाता है,
उनके पदचिन्हो पर चलकर, वह आनंद मनाता है।
आओ बने नेक नागरिक हम और विश्रव का भला करें
हर दुर्बल को सबल बनाएं जग में ज्ञानालोक भरें।।