सदा हर आत्मा के प्रति स्नेह के खुशी के सुनहरी पुष्पों की वर्षा करते रहो। स्नेह की वर्षा दुश्मन को भी दोस्त बना देगी। वह माने न माने लेकिन आप उसको मीठा भाई मीठी बहन मानते चलो। वह पत्थर फेके आप रत्न दो क्योकि आप रत्नागर बाप के बच्चे रत्नो की खान के मालिक हो। भिखारी नही हो जो साचो वह दे तब दूँ। बुद्धि से भी यह संकल्प करना कि यह करे तो मै करुँ यह स्नेह दे तो मैं दूँ यह भी हाथ फैलाना है। इसमे निष्काम योगी बनों। छोटी छोटी बातो के पीछे तन के पीछे मन के पीछे साधनो के पीछे सम्बन्ध के पीछे निभाने के पीछे समय और सकल्प नही लगाओ। दान दो वरदान दो तो स्व का ग्रहण समाप्त हो जायेगा। अविनाशी लंगर लगाओ। आत्माओ की वायुमण्डल की प्रकृति की भूत प्रेत आत्माओ की सबकी सेवा करनी है। भटकती हुई आत्माओ को भी ठिकाना देना हैं। सब कुछ सेवा में लगाओ श्रेष्ठ मेवा खूब खाओ।
खुशी का दान
जे सदा हर्षित है वह मन वाणी और कर्म से सर्व को सदा खुशी का दान देता है। उसके वायब्रेशन्स् उसकी रुहानी नजर उसका सम्पर्क उसकी वाणी दुखी आत्मा को खुशी का अनुभव कराती है। जैसे प्रजा अपने योग्य राजा को देख खुश हो जाती है, वैसे ऐसी हर्षित आत्मा को देख कैसी भी दुखी आत्मा सुख का अनुभव करती है। प्राप्ति की खुशी में झूमती है।