परम आत्मा के साथ आत्मा का क्या सम्बन्ध है? यह मालूम होने से विषय का महत्व ठीक समझ में आता है। हरेक योगाभिलाषा को मालूम होना चाहिए कि परमात्मा आत्मा का परमपिता है, वह उसकी माता भी है। उसका शिक्षक और सदगुरु भी है। आत्मा चिरकाल से उससे बिछुडी हुई है। अब अपने उस सर्व सम्बन्धी से मिलन मनाना ही तो योग है। स्वयं ही को शिव अथवा आत्मा ही को परमात्मा मान लेना तो योग का विपरीत भाव है।
परमात्मा के साथ अपना सम्बन्ध मानने से ही उसके प्रति हमारे मन में प्रेम जागृत होता है और प्रेम ही तो मन को मग्न करने एवं जोडने का साधन है। अतः हरेक योगाभ्यासी को चाहिए कि वह इस भाव में लवलीन हो कि परमप्रिय परमापिता है, यह हमारी ममता भरी माँ है। और वही हमारा परममित्र भी है तथा अविनाशी शिक्षक और सदगुरु भी। परमात्मा के साथ माता पिता का सम्बन्ध होने से ही तो हमें उनकी ईश्वरीय सम्पत्ति पवित्रता और शान्ति की प्राप्ति होगी।