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दूसरी हरित क्रांति में कृषि अनुसंधान परिसर, पटना की महत्वपूर्ण भूमिका

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पटना : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना अपनी स्थापना का रजत जयंती समारोह मना रहा है। इस निमित्त आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन 21 फरवरी 2025 को “उन्नत कृषि-विकसित भारत: पूर्वी भारत के लिए तैयारी” थीम पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। पद्म भूषण डॉ. आर.एस परोदा, अध्यक्ष, ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (टीएएएस) और पूर्व सचिव, डेयर -सह-महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे । कार्यक्रम में डॉ. एन. सरवण कुमार, सचिव, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण, डॉ इंद्रजीत सिंह, माननीय कुलपति, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना; डॉ पी. के. घोष, पूर्व निदेशक, एनआईबीएसएम, रायपुर और डॉ. ए. पटनायक, पूर्व निदेशक, आईआईएबी रांची और डॉ. उमेश सिंह, अधिष्ठाता, संजय गांधी डेयरी प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना विशिष्ट अतिथि रूप में उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि डॉ. आर. एस. परोदा ने संस्थान के निदेशक और कर्मचारियों को बधाई देते हुए कहा कि 25 वर्ष पूर्व बोया गया बीज अब एक फलदार वृक्ष बन गया है। यह एक ऐसा क्षण है जो गर्व और प्रसन्नता से भर देता है। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री (वर्तमान बिहार के मुख्यमंत्री) नीतीश कुमार के साथ आधारशिला रखने को याद किया और संस्थान की उल्लेखनीय यात्रा का वर्णन किया। डॉ. परोदा ने भारत में दूसरी हरित क्रांति के लिए अंतर्विषयक दृष्टिकोण का उपयोग करके पारिस्थितिकी-विशिष्ट क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने फसल-आधारित अनुसंधान प्रणाली से समग्र कृषि प्रणाली दृष्टिकोण की ओर एक आदर्श बदलाव का आह्वान किया, जिससे कृषि में स्थिरता और अनुकूलता सुनिश्चित हो सके। युवाओं को कृषि में लाने की महत्वपूर्ण चुनौती पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. परोदा ने इस क्षेत्र में युवाओं को आकर्षित करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास के महत्व पर बल दिया। उन्होंने संस्थान के कार्यों की प्रशंसा की और बताया कि सही रणनीति के साथ, नवाचारों को बढ़ाने से प्रभावशाली परिणाम सामने आएंगे। अगले 25 वर्ष के दृष्टिगत, उन्होंने फसलों के ऊर्ध्वाधर गहनता, धान-परती भूमि के प्रभावी उपयोग, सूक्ष्म सिंचाई के विस्तार और सामाजिक विकास सूचकांक में सुधार पर केंद्रित भविष्य की कल्पना किया। उन्होंने नवाचार को बढ़ावा देने और किसान केंद्रित कृषि पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को प्रोत्साहित किया। पूर्वाह्न में, पद्मभूषण डॉ. आर.एस. परोदा ने महिला केंद्रित सूक्ष्म और नैनो होम्सटैड खेती के मॉडल का उद्घाटन किया। जिससे वर्ष भर आय और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी। संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने बताया कि डॉ. परोदा की उपस्थिति ही संस्थान के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि इस सेमिनार के माध्यम से आसन्न 25 वर्ष के लिए एक स्पष्ट दृष्टि और मिशन तैयार करना आवश्यक है, जिससे सतत कृषि प्रगति के लिए एक रोडमैप सुनिश्चित हो सके। डॉ. एन. सरवण कुमार ने इस बात पर बल दिया कि कृषि विश्व स्तर पर सबसे जोखिम भरा पेशा है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से इसकी चुनौतियाँ और भी बढ़ गई हैं। उन्होंने नीति निर्धारकों व वैज्ञानिकों के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। जिससे टिकाऊ समाधान विकसित किए जा सकें, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें और किसानों को बदलती जलवायु के अनुकूल कृषि में सहायता कर सकें। डॉ. उमेश सिंह ने डेयरी पर बल दिया और कहा कि डेयरी केवल एक उद्योग नहीं है बल्कि एक परिवर्तनकारी आंदोलन है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और लाखों परिवारों की आजीविका में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉ. घोष ने कहा कि भविष्य में जीन प्रबंधन, कार्बन प्रबंधन और वर्षा जल प्रबंधन टिकाऊ कृषि के आवश्यक स्तंभ होंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कृषि प्रणालियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण होगा। डॉ. पटनायक ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना सूक्ष्म-समेकित कृषि प्रणाली (माइक्रो-आईएफएस), जैविक और प्राकृतिक खेती के साथ संरक्षण कृषि का एकीकरण, कृषि स्थिरता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए एआई-संचालित समाधानों के उपयोग पर बल देते हुए, नवाचार पर केंद्रित अनुसंधान कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से कार्य करने की चर्चा किया।

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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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