Wed. Mar 12th, 2025

अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में रजत जयंती स्थापना दिवस समारोह

पटना : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना की स्थापना 22 फरवरी 2001 को जल प्रबंधन अनुसंधान निदेशालय, पटना के केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र, रांची (भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर क्षेत्रीय स्टेशन) और केंद्रीय तम्बाकू अनुसंधान संस्थान, पूसा (केंद्रीय तम्बाकू अनुसंधान संस्थान, राजमुंदरी क्षेत्रीय स्टेशन) को मिलाकर की गई। उपर्युक्त संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण संस्थान है।

संस्थान का अधिदेश:
कृषि उत्पादकता, आय और पर्यावरणीय स्थिरता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का समेकित प्रबंधन करना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना विगत 25 वर्षों से पूर्वी भारत के सात राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम में किसानों की निरंतर सेवा करते हुए कृषि अनुसंधान एवं इनोवेशन में एक प्रमुख शक्ति के रूप में जाना जाता है  कृषि में बदलाव एवं किसानों के सशक्तिकरण में अपनी गौरवपूर्ण भूमिका के उपलक्ष्य में 22 फरवरी 2025 को यह संस्थान रजत जयंती स्थापना दिवस समारोह अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाने जा रहा है। उपर्युक्तस स्थान परिसर की आधारशिला तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री नीतीश कुमार एवं सचिव, डेयर तथा महानिदेशक आई.सी.ए.आर. डॉ. राजेंद्र सिंह परोदा ने रखी। इस संस्थान के अंतर्गत वर्तमान में पटना मुख्यालय के 4 प्रभागों के अतिरिक्त रांची में अवस्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र तथा बक्सर एवं रामगढ़ में स्थापित दो कृषि विज्ञान केंद्र भी किसानों को निरंतर सेवा प्रदान कर रहे हैं।

संस्थान की 25 वर्षों की यात्रा परिवर्तनकारी रही है, संस्थान की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं……

1.विभिन्न कृषि पारिस्थितिक क्षेत्र के लिए समेकित कृषि प्रणाली मॉडल का विकास जिसमें उर्वरक के उपयोग को 20 से 30% तक कम करने और प्रति हेक्टेयर 1.7 से 2.0 लाख रुपये तक आय बढ़ाने की क्षमता है।
2. धान-परती भूमि को हरा-भरा करने को खरीफ में धान की अल्पावधि फसल के बाद परती हुए खेत में भूमिजल का संरक्षण सुनिश्चित करते हुए रबी में चना, मसूर, कुसुम अथवा सरसों की फसल उगाकर कुल धान-परती भूमि का क्षेत्रफल कम करने की तकनीक का विकास।
3. धान-गेहूं फसल प्रणाली की फसल आवृत्ति को पर्यावरण-अनुकूल वृद्धि के लिए फसल अवशेष को खेत में रखते हुए शून्य जुताई कर बोये गए गेहूं की फसल के पश्चात नाइट्रोजन-वर्धक ग्रीष्मकालीन मूंग की अतिरिक्त फसल लेने की तकनीक का विकास।
4. सब्जी-आधारित फसल प्रणाली में ऊँची क्यारियों, ड्रिप सिंचाई एवं पॉली मल्चिंग का उपयोग करते हुए मिट्टी के पोषक तत्वों तथा जल संसाधनों के संरक्षण की तकनीक को विकसित कर जल उत्पादकता में वृद्धि एवं किसानों की सालाना आय में प्रति हेक्टेयर लगभग 2 से 3 लख रुपए की बढ़ोतरी हासिल की गई।
5. पूर्वी भारत एवं अन्य क्षेत्रों में लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि में बोई जा रही धान की 12 उच्च-उत्पादकता वाली जलवायु अनुकूल किस्मों, जैसे स्वर्ण श्रेया और स्वर्ण समृद्धि को जारी किया गया।
6.  विविध जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल सब्जियों की उच्च उत्पादन-क्षमता वाली, पोषक तत्वों से परिपूर्ण 63 किस्में, चना की एक सुखाड़-सहिष्णु किस्म, मखाना की पहली किस्म स्वर्ण वैदेही और फलों की 6 किस्में विकसित की गईं।
7. सौर ऊर्जा आधारित प्रोद्योगिकियों जैसे सौर धान थ्रेशर, सौर कीट जाल और सौर सिंचाई पंप साइजिंग टूल सॉफ्टवेयर का इनोवेशन किया गया।
8. ‘पूर्णिया गाय’ एवं ‘मैथिली बत्तख’ की देसी नस्लों का पंजीकरण किया गया तथा पशुधन की 6 नस्लों की पहचान की गई है।
9. बिहार एवं झारखण पशुधन के लिए उपयुक्त पशु आहार के रूप में “स्वर्ण मिन” नामक खनिज मिश्रण का विकास किया गया।
10. इस संस्थान के बक्सर एवं रामगढ़ में अवस्थित दोनों कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों के सशक्तिकरण को उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण तथा नियमित परामर्श उपलब्ध कराया जाता है।
11. अत्याधुनिक क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस; अंतर्राष्ट्रीय मक्का एवं गेहूँ अनुसंधान केंद्र, मेक्सिको और अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, श्रीलंका जैसे वैश्विक संस्थानों के साथ निरंतर सहयोग बनाए रखना।
12. परिषद के सबसे प्रतिष्ठित मानद विश्विद्यालय के रूप में प्रसिद्ध भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2023 में शैक्षणिक हब का शुभारंभ किया गया तथा कृषि में स्नातक, परास्नातक तथा पी.एचडी. की पढ़ाई शुरू की गई।

13. संस्थान द्वारा कोयला-खदान प्रभावित क्षेत्रों में भूमि पुनरुद्धार हेतु वृक्षारोपण आधारित कृषिवानिकी मॉडलों का विकास किया गया।

14. इस संस्थान ने बिहार सरकार द्वारा वित्तपोषित जलवायु-अनुकूल कृषि कार्यक्रम के माध्यम से गया और बक्सर जिलों के किसानों को फसलों की जलवायु-अनुकूल किस्में तथा उन्नत प्रोद्योगिकियाँ उपलब्ध कराईं।
15. “निरंतर आय और कृषि स्थिरता के लिए सहभागी अनुसंधान अनुप्रयोग” कार्यक्रम के माध्यम से इस संस्थान द्वारा कमजोर वर्ग के लगभग 12,000 किसानों के सशक्तिकरण को वांछित सहायता प्रदान करते हुए उन किसानों की आय में लगभग 20% से 25% की वृद्धि सुनिश्चित की जा रही है।
16. संस्थान के राँची केंद्र द्वारा परिशुद्ध कृषि तथा स्वदेशी फसल संरक्षण हेतु वांछित परिवारंकारी योजनाओं के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 17.68 करोड रुपये का वित्तपोषण हासिल किया गया और अंतरजाति ग्राफ्टिंग, जैविक फल प्रणाली, कटहल मूल्य संवर्धन जैसे अनेक इनोवेशन के जरिये किसानों का सशक्तिकरण सुनिश्चित किया गया।

भविष्य को देखते हुए, इस संस्थान का उद्देश्य स्मार्ट तकनीकों, सटीक उपकरणों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के साथ टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है। इसका लक्ष्य भविष्य की जलवायु चुनौतियों का समाधान करना, युवाओं को कृषि की ओर आकर्षित करना और उद्यमिता को बढ़ावा देना है। पूर्वी क्षेत्र के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना की 25 वर्षों की यात्रा कृषि और किसानों को सशक्त बनाने के प्रति इसके अटूट समर्पण को दर्शाती है। जैसे-जैसे संस्थान नवाचार और सहयोग में आगे बढ़ रहा है, यह पूर्वी भारत में कृषि प्रगति का एक अहम स्तंभ बना हुआ है, जो “विकसित भारत” की दिशा में एक स्थिर और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित कर रहा है।

Spread the love

By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

Leave a Reply