हम सभी मानते हैं, यह सृष्टि ईश्वर की रचना है। और उसी के बनाए विधान से चलती है। जब ईश्वरीय विधान की अवहेलना होती है तभी दुख अशान्ति बढती है। रचयिता कोई भी रचना दुख अशान्ति के लिए नही करता। ईश्वर को दुखहर्ता सुखकर्ता शान्ति का सागर कहा गया हैं तो वो दुख अशांति कैसे दे सकते है! परन्तु आज दुनिया में चारो ओर दुख अशान्ति का साम्राज्य है। कोई भी मानव सुखी शान्त नही है। उनमें काम, क्रोध ,लोभ, मोह अहंकार, ईष्र्या, नफरत, आलस्य आदि भर गये है। इसका मुख्य कारण है। देह अभिमान जिससे हम अपने का चेतन सत्ता आत्मा न समझ, देह समझने लगे है। देह अभिमान में आने से देह के धर्म देह के संबंध देह के पदार्थ घर जायदाद जो नव्श्रर है, देह के छूटने पर सब छूटने वाले हैं, इन्ही के मकडजाल में फंस कर रह गये है। आत्मा का स्वधर्म शान्ति है, आत्मा का घर शान्तिधाम है। आत्मा के परमपिता परमात्मा शान्ति के सागर दुखहर्ता सुखकर्ता सदाशिव है।