करता रोगो सम प्रहार, बढते जाते दुःख अपार।
मानव हो जाता लाचार, अंतर्मन करता गुहान।
हर पल कर तू ज्ञान का मंथन, पतन की जड़ है परचिंतन।
इसका उसका तेरा मेरा चारो तरफ है घोर अंधेरा।
माया का होता प्रहार शक्तिया सब जाएं बेकार।
हर पल कर तू सत्य का चिंतन पतन की जड है परचिंतन।
जीवन मिला है एक बार, क्यो करता इसका संहार।
कर ले जीवन का श्रृंगार, मत बना इसे अंगार। निस दिन कर तू सुख का वंदन पतन की जड है परचिंतन।
करनी गर बुराई की चर्चा, इससे तो मौन ही अच्छा।
इधर उधर की बाते अपार, कभी ना होगा बेड़ापार।
हर पल कर तू प्रभु का चिंतन पतन की जड़ है परचिंतन।