Wed. Feb 5th, 2025

किसी भी महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहनशीलता का दिव्य गुण धारण करना अति उपयोगी तथा आवश्यक है। विश्व इतिहास बताता है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति विभिन्न धर्मो की स्थापना महान प्राप्तियो आदि में आने वाली कठिनाइयो कष्टो विध्नों रुकावटो आदि को सहन करने ही महान सफलताये प्राप्त हो सकती है। महात्मा बुद्ध क्राइस्ट आदिगुरु शंकराचार्य महर्षि दयानन्द सुकरात व मीरा आदि ने आदि ने विरोधियों द्वारा डाले गये विध्नो, अत्याचारो व अपमान आदि को सहन करके ही अपने अपने लक्ष्य को हासिल किया। कुछ लोगो को तो अपने जीवन का बलिदान भी देना पड़ा।
विपरीत परिस्थितियों में भी शुभ भावना व एकरस अवस्था
हम ब्रहा्राकुमार ब्रहा्राकुमारियां सबसे महान व सर्वश्रेष्ठ आदि संनातन देवी देवता धर्म की स्थापना के निमित बने हैं। तो हमे अपेक्षाकृत अधिक विध्नो कष्टों विरोध अपमान आदि को सहन करने की मानसिक स्थिति विकसित करनी चाहिए। हम स्वयं के पाँच विकारों पर जीत पाकर निर्विकारी बनते हैं, फिर निराकार परमात्मा का सरल ज्ञान तथा सहज राजयोग दूसरों को सिखते है। यह नया निराला अलौकिक अनुपम तथा सामान्य सोच से परे का ज्ञान होने के कारण परिवार व समाज इसका डट कर विरोध करते है। परन्तु शिव परमात्मा के सहयोग के चलते हमें इतना कष्ट महसूस नही होता कि हम सहन न कर सके। वैसे भी अल्पकाल की सुख शान्ति के लिए हम भक्ति के कष्टों लौकिक परिवार व समाज के दुखदाई बन्धनो आदि को भी सहन करते ही है। भले ही दुखी होकर करे। परमात्मा पिता ने सहनशीलता का वास्तिवक अर्थ बताया है। कि जब दुख अशान्ति तनाव का्रेध आदि पैदा करने वाली विपरीत परिस्थितियो में भी व्यक्ति दुखी अशांत न हो तथा सर्व के प्रति अपनी शुभ भावना व एकरस अवस्था बना कर रखे तब ही वह सहनशील कहालाता है।

Spread the love

Leave a Reply