वातावरण को पावन करने के लिए मानाव यज्ञ व हवनो का आयोजन किया करते है। परन्तु विचार करे क्या इस तरह स्थूल साधनो से वायुमण्डल बदल सकता हैं? वायुमण्डल तो दूषित हुआ ही है दूषित विचारो से पतित संकल्पो से तो उसे पवित्र भी शुद्ध संकल्पो से ही बनाया जा सकता हैं। यज्ञ हवन तो हम बहुत पुरातन काल से करते आए हैं परन्तु वातावरण तो बदला ही नही तो कैसे आशा की जाए कि स्थूल साधनो सें वातावरण बदल जाएगा। दूसरे यज्ञ आदि मे जो इतने द्रव्य पदार्थ स्वाहा किए जाते है। संसार में उनका तो अभाव ही होता है। यज्ञ हवन करने से जो थोड़ा बहुत वातावरण शुद्ध होता भी है, वह तो उसी क्षण मनुष्यो के अशुद्ध विचारो से पुनः दूषित हो जाता हैं क्योकि इतने अधिक यज्ञ तो आयोजित नही किए जाते जो सभी मनुष्यो के व्यर्थ संकल्पो से बने वातावरण को शुद्ध कर सकते है।