एक बुझा हुआ दीपक दूसरे बुझे दीपक को कैसे जला सकता हैं आज पुरे विश्व गुरुओ कथावाचको की कमी नही हैं धार्मिक संस्थाओ मंदिरो मस्जिदों चर्चो की कमी नही हैं भक्ति या तीर्थयात्राओ की कमी नही लेकिन अंधकार फिर भी दिन के दिन बढ़ता जा रहे है। अधर्म की प्रबलता और धर्म के निर्बलता उत्तरोत्तर बढ़ते जा रहे हैं कोई धन के नशे चुर चुर तो कोई शास्त्रो के ज्ञान के अभिमान में चूर होते हैं।
भौतिक जीवन से बढ़कर आध्यात्मिक जीवन शैली भी हैं पवित्र और योगी जीवन अलौकिक प्राप्ति संपन्न जीवन हैं जिसके आगे भौतिक उपलब्धियां तुच्छ मात्र हैं इस बात से सदा अनभिज्ञ हैं। ऐसे अवस्था में मनुष्य का आत्मज्योति को जगाने का कार्य कोई साधारण शक्ति नही कर सकती।