जीवन में ऐसा गुरु मिलना सौभाग्य के बात है। जिसमें गुरु अपना सब कुछ शिष्य को सिखा दे और ऐसा शिष्य भी मिलना किसी सौभाग्य से कम नही जहां शिष्य गुरु पर सब कुछ समर्पित करने को तैयार रहे। माना जाय तो संगीत ही एक ऐसा विधा है। जिसमें गुरु शिष्य की परंपरा कायम हैं गुरु के सानिध्य में बैठकर सीखना एक अलग अनुभव है। गुरु जैसा चाहें वैसा गाना सबसे बडी बात है। और गुरु से बारीकियां निकलवाना शिष्य के ईमानदारी है।