इसका मुख्य कारण यह है। कि मनुष्य जब अपनी दैवी सभ्यता को भूलता है। तो सबसे पहले स्त्री पुरुष के नाम पर भेदभाव शुरु होता हैं। पुरुष प्रधानता के कारण नारी को दबाया जाता हैं भारतीय स्त्रियों ने अनेको कप्रथाओ को सहन किया हैं, जैसे सतीप्रथा जिसमें जिंदा स्त्री को पति की मृत्यु पर उसकी चिता पर बैठा दिया जाता था और इसे एक पतिव्रता नारी का धर्म समझा जाता था। समाज में एक बहुत बड़ा अंधविव्श्रास था
कि हमारे धर्मग्रंथो में ऐसा लिखा हुआ है। लेकिन हकीकत तो यह हैं कि जब देश मे राजपूत राजाओ को विरोधी राजाओ ने हराया तो अनेक राजपूत नारियो ने अपनी लाज बचाने के लिए या कहे परपुरुष के अधीन होने से बचने के लिए हवन कुंड बनाकर उसमें अपने प्राणो की आहुति स्वेच्छा से दे दी। विडंबना यह रही कि समय के साथ लोगो ने इसे अपना धर्म समझ लिया। शास्त्रो का जब गहराई से अध्ययन किया जाता हैं तो हम पाते हैं कि किसी भी शास्त्र में सती होना स्त्रीधर्म मान्य नही है।