वर्तमान समय समाज में नैतिक मूल्यो का हा्रस होता जा रहा हैं इसका मुख्य कारण हैं देहअहंकार का बढ़ना। जीवन की श्रेष्ठता जीवन के मूल्यो से युक्त जीवन पुष्पो के एक गुलदस्ते के समान हैं जो जीवन को दिव्यता प्रदान करती हैं अनेक दिव्य गुणो में सें एक सर्वश्रेष्ठ गुण हैं। निरहंकारिता। निरहंकारिता से तात्पर्य अहंकार का शून्य हो जाना अथवा अहंकार का ना होना है। अपने नाम पद प्रतिष्ठा को अपना समझ हम उससे अटैच हो जाते है। उसी के भान में स्थित हो जाते है। वही देहभान और देहअहंकार की अवस्था हैं। निरहंकारिता का स्पष्ट अर्थ हैं कि जब हम स्वयं जो हैं जो हमारा निज स्वरुप हैं जो हमारा निजी गुण हैं उसे पहचान कर उससे जुडते हैं और उसका अनुभव करते हैं तो उसी में निरहंकारिता समायी हुई हैं।