मोको कहाँ ढूँढे बंदे मै तो तेरे पास मे न मैं केवल न मैं मस्जिद, न काबे कैलाश में न तो कौन क्रियाकर्म मे, न योग बैराग में।?
कबीर एक क्रांतदर्शी कवि थे, जिनके दोहों और साखियों मे गहरी सामाजिक चेतना प्रकट होती है। वे हिंदू और मुसलमान के भेदभाव को नहीं मानमे थे। उनका कहना था कि राम और रहीम एक है। वे सामाजिक ऊँच नीच को नहीं मानते थे। उनके लिए सब समान थे। वे क्रांतिकारी रचनाकार थे उनकी यह क्रांतिकारी चेतना आर्थिक, सामाजिक भावों का परिणाम है। सामाजिक असमानता के शिकार और आर्थिक साधनों के अधिकार से वंचित निम्नवर्गीय लागों की स्थिति देखकर उनका मन द्रवित हो उठा था। धार्मिक कर्मकांडों और पाखंडों के विस्तार और रुढ़ियों ने उन्हे मंदिर प्रवेश की अनुमति प्रदान नही की थी। इन सभी कारणों ने उन्हें विद्रोही बना दिया।